गलती का एहसास
कल जब अपेक्षा अपनी स्कूल बस से घर लौट रही थी, तब उसने देखा कि एक बूढ़ी औरत और उसकी पोती सड़क किनारे बैठे थे और पोती एक थैली में से अपनी दादी को कुछ खिला रही थी | अपेक्षा बस में बैठे -बैठे सोच में डूब गई, मैं भी तो दादा जी और दादी के साथ रहती हूँ पर मैंने कभी उनके साथ ठीक से बात भी नहीं की और इस लड़की के पास कुछ भी नहीं है फिर भी ये अपनी दादी के साथ प्यार से बाँट कर खा रही है |
आज उसे अपनी गलती का एहसास हो रहा था, उसने मन ही मन तय किया कि आज से वो पूरी तरह बदल जाएगी और रात में थोड़ा समय निकालकर दादा-दादी के साथ बैठा करेगी | मन में कईं आशाएँ लिए वो कब घर पहुँच गई पता ही न चला | मगर ये क्या ? जैसे ही उसने घर के अंदर कदम रखा दादी अपने सामान का बैग लेकर दूसरे कमरे से बैठक में प्रवेश कर रही थी | उसने पूछा- दादी क्या हुआ ? आप कहाँ जा रही हैं ? उनकी आँखों में आँसू थे, ये देखकर अपेक्षा दादा जी के पास पहुँची, जो अपने बैग की ज़िप लगा रहे थे, उसने उनसे भी वो ही सवाल पूछा | पहले तो दादाजी चुप रहे फिर कुछ सँभलते हुए बोले कि बेटा हमें यहाँ पंद्रह दिन हो गए, पर ऐसा लगता है जैसे बहुत दिन हो गए, सच तो ये है अप्पू कि हमें गाँव में रहने की आदत है और हमारा यहाँ मन नहीं लग रहा है | तुम्हारे पिताजी से टिकट मँगवा ली हैं आज शाम की गाड़ी से वापस जा रहे हैं |
अपेक्षा का मन बहुत दुखी हुआ क्योंकि उसे पता था कि दादा-दादी अब बूढ़े हो चले है और वो यहाँ (मुंबई) हमेशा के लिए रहने आए थे | दादी के आँसू देखकर उसे समझ आ रहा था कि गलती कहाँ है ? उसे याद आता है वो दिन जिस दिन वो अपने मम्मी- पापा के साथ दादा- दादी को लेने स्टेशन गई थी, जैसे ही दादी ने उसे देखा गले से लगा लिया और काफी देर तक मन ही मन उसे निहारते हुए दुआएँ देती रही | दादी उसके लिए बहुत ही स्वादिष्ट मिठाई बनाकर लाई थी और दादाजी ने उसे एक डायरी दी जिसमें उन्होंने अपने गांव के बहुत सारे किस्से लिखे थे | एक- दो दिन तक सब बहुत अच्छा था मम्मी-पापा की छुट्टी थी, इसलिए सब लोग साथ में बैठकर खूब बातें करते, पर सोमवार आते ही मम्मी -पापा अपने काम पर निकल गए और अपेक्षा स्कूल के लिए | दिन-भर बेचारे दोनों किसी तरह अपनेआप को व्यस्त रखने की कोशिश में लगे रहते, पर शाम को जब सब घर लौट आते तब भी सब अपने में ही व्यस्त दिखाई देते, मम्मी खाना बनाने और घर की कामों में लग जाती, पापा फ़ोन पर लगे रहते और अपेक्षा स्कूल के कामों में |
जब दादी ने इस बारे में मम्मी से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने ये कहकर टाल दिया की माँ जी बस सोमवार से शुक्रवार तक हम व्यस्त रहते हैं फिर शनिवार, रविवार है न आपके साथ खूब सारी बातें करने के लिए | फिर दादाजी ने भी पापा से बात करने का प्रयास किया पर उन्होंने ये कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया कि पिताजी मुंबई का ये ही कल्चर है, हफ्ता भर खूब काम करो और फिर दो दिन आराम करो, आप नहीं समझ पाओगे, आपने तो बड़े आराम की नौकरी की है | फिर भी दोनों ने यहाँ रहने का बहुत प्रयत्न किया पर इस बार अपेक्षा की एक बात ने दोनों बुज़ुर्गों के दिल को इतना दुख दिया कि उन्होंने वापस गाँव लौट जाना ही उचित समझा | हुआ यूँ कि अपेक्षा के स्कूल में ग्रैंड पेरेंट्स डे मनाया जाना था, सभी छात्रों को कहा गया कि वे अपने दादा-दादी या घर के किसी बुज़ुर्ग को स्कूल लेकर आएं | अपेक्षा अच्छे स्कूल में पढ़ती थी और अपने दादा-दादी के रहन-सहन को देखकर उसने अपनी शिक्षिका से ये कह दिया कि मेरे घर में कोई बुज़ुर्ग नहीं है और जब वो ये बात अपनी मम्मी को बता रही थी तभी दादी ने सुन लिया और उस दिन से ही दोनों दादा-दादी चुप रहने लगे और वापस गाँव जाने की ज़िद करने लगे |
कईं बार कारण पूछने पर भी जब दादा-दादी ने कुछ नहीं बताया, तो पापा ने टिकट लाकर दे दिए | अपेक्षा को अपने किये पर बहुत शर्मिंदगी थी, पर अब कर भी क्या सकती थी तभी उसने सोचा कि अगर अभी भी न रोक सकी तो कुछ नहीं होगा और ज़िन्दगी भर मैं इसी ग्लानि के साथ रहूंगी कि दादा-दादी मेरी वजह से वापस लौट गए | वो सोच रही थी कि कैसे उन्हें रोकूँ कि तभी उसके दिमाग में एक विचार आया, और उसके मुख की गंभीरता मुस्कान में बदल गई | वो भाग कर दादी के पास गई और बोली - दादी," हमारे स्कूल में एक प्रतियोगिता होने वाली है जिसमें सबको घर से एक मिठाई बनाकर लानी है, क्या आप वो मिठाई मुझे बनाना सीखा देंगी ? वरना हर बार की तरह रोहिणी जीत जाएगी | " दादी ने पूछा- "कब ले जाना है ? " अपेक्षा बोली अगले सोमवार | इसपर दादी ने कहा तो मैं तुम्हे लिखवा देती हूँ तुम बनाकर ले जाना | अपेक्षा रोने लगी और बोली दादी क्या तुम मेरे लिए इतना भी नहीं करोगी ? मैं बहुत बुरी हूँ न ? मुझे ये ही सजा मिलनी चाहिए | इतना सुनना था की दादी ने उसे गले लगाया और खूब फूट-फूट कर रोने लगी और बस बार-बार ये ही दोहराती रही कि नहीं, मेरी अप्पू बहुत अच्छी है।
रोने की आवाज़ सुनकर सब लोग कमरे में आ गए | दादाजी ने धीरे से कहा कांता ट्रेन का समय हो गया है, चलो तैयार हो जाओ इसपर दादी ने कहा अब आए हैं तो कुछ दिन और रह लेते हैं अपेक्षा को मिठाई प्रतियोगिता जिता कर जायेंगे | अपेक्षा ने झट से अपना सिर उनकी गोद से उठाया और कहा कि अब मैं आप दोनों को कहीं नहीं जाने दूँगी, हमेशा अपने साथ रखूंगी | ये सुनकर दोनों के चेहरों पर एक मीठी मुस्कान दिखाई देने लगी |
दोस्तों गलती हम सबसे होती है, पर जो व्यक्ति समय रहते उस गलती को सुधार लेता है, उसे ही समझदार माना जाता है | आज हम सब अपनी दिनचर्या में बहुत व्यस्त हैं, और कईं बार इस व्यस्तता को बहाना बनाकर हम अपने बूढ़े माता-पिता की ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं, इस उम्र में हमें उनकी ज़िम्मेदारी उठानी चाहिए पर हमें वे बोझ लगने लगते हैं, ये हम भी जानते हैं कि उन्हें हमसे कोई लालच नहीं, वे बस अपने जीवन के इस मोड़ पर हमारा साथ चाहते हैं, क्या हम उनका साथ दे सकते हैं ? आपके जवाब का इंतज़ार रहेगा |
- कविता गाँग्यान